लगभग अस्सी पृष्ठों का 'हिन्द स्वराज' महात्मा गांधी के चिन्तन का बीज है। आगे यही बीज उनके विचारों के अक्षयवट के रूप में विकसित हुआ। बीसवीं सदी के पहले दशक के लगभग अन्त में मूलतः गुजराती में तीस हजार शब्दों में लिखी गई और स्वयं उन्हीं द्वारा अंग्रेजी में अनूदित इस पुस्तिका की तुलना मार्क्स एन्जिल्स द्वारा संयुक्त रूप से लिखित 'कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो', जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी', रूसो के 'सोशल कांट्रैक्ट', सेंट इग्नैटियस लोयोला के 'स्प्रिचुअल एक्सरसाइसेज' और 'बाइबिल' में सेंट मैथ्यू अथवा सेंट ल्यूक के अध्याय चार के प्रवचनों से की गई है। जैसे 'न्यू टेस्टामेंट' के इस अध्याय में प्रभु ईसा मसीह ने अपने जीवन के ईश्वरीय उद्देश्य की घोषणा की थी उसी तरह गांधी ने अपने आगामी सार्वजनिक जीवन के लक्ष्य और उसके प्राप्ति के मार्ग-निदर्शक सिद्धान्त 'हिन्द स्वराज' में निर्दिष्ट कर दिए थे। यह पुस्तिका उन्होंने समुद्री यात्रा के दौरान इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका लौटते हुए दस दिनों में (13 नवम्बर से 22 नवम्बर 1909 के बीच) लिखी थी। 'हिन्द स्वराज' एक स्वतःस्फूर्त-अन्तःप्रेरित रचना है। इसमें व्यक्त विचार प्रौढ़ गांधी के अन्तर्मन को लम्बे समय से मथते रहे। 14 अक्तूबर 1909 को अपने तरुण अध्ययनशील सहयोगी हेनरी पोलक (1882-1959) को उन्होंने लिखा था कि चीज़े उनके दिमाग में खदबदा तो रही थी, पर कोई साफ रोशनी नज़र नहीं आ रही थी। इसी बीच दक्षिण अफ्रीका के लिये रवाना होने से पहले उन्हें लंदन के एक प्रतिष्ठित शांतिवादी संगठन-'पीस एंड ऑर्बिट्रेशन सोसाइटी' (शांति और मध्यस्थता संघ) का 'ईस्ट एंड वेस्ट' (पूरब और पश्चिम) विषय पर भाषण का निमंत्रण मिला। इसका जिक्र करते हुए वह 27 वर्षीय विचारशील पोलक को बताते हैं कि "उक्त निमंत्रण स्वीकार करते ही उनके मनोमस्तिष्क में और भी हलचल मच गई। अंततः पिछली रात को ही विचारों